दो दिलों का रिश्ता कैसा होना चाहिए दो दिलों का रिश्ता डाली और फूल सा होता है, फूल टूट जाय तो डाली सुखी लगती है, फूल खिल जाय तो वही डाली खुबसुरत लगने लगती है, उसी प्रकार रिश्ते में भी दोनों दिलों का महत्व होता है एक ओर से निभाने वाले दिल के रिश्ते कभी ज्यादा नहीं चल पाते है क्योंकि वो दिल से नही दिमाग से निभाए जाते थे। इसलिए दो दिलों का रिश्ता ऐसा मजबूत होना चाहिए कि एक के बिना दुसरे का काम नही चल सकता है। दो दिलों का रिश्ता एक खूबसूरत एहसास है जब रिश्तों को किसी प्रकार से तोलने का प्रयास करोगे तो कभी आप बराबर तोल नही पाओगे क्योंकि ये रिश्ते एहसास से नापे जाते है, एहसास ही वो चीज़ है जिससे आपके रिश्ते की मजबूती पता चलती है।
बेटी ही पिता की जिंदगी है|
बेटी ही पिता की जिंदगी कैसे होती है? जब तक माता और पिता जिन्दा होते है बेटी अपने हक़ और अधिकार जो व्यवहारिक रूप में उसका उपयोग करते हुए बेखौफ कुछ भी ले सकती है या मांग सकती है| परन्तु जब वही उसके माता और पिता का अगर न होना होता है | तो उसके घर में लाख चाहे उसका भाई अच्छा रहता है परन्तु पिता उसकी हिम्मत और हौसला होता है|
पिता कभी ये एहसास नहीं कराता है के उससे ज्यादा प्रेम करता हु परन्तु सच यही रहता है दुनिया की सबसे ज्यादा अगर चिंता होती है पिता को तो वो उसकी बेटी की होती है | बेटी भी कभी ये एहसास नहीं करवाती है मेरे लिए सबकुछ है परन्तु पिता ही उसका हौसला रहता है पिता ही उसकी हिम्म्मत होती है |
पिता ही उसकी पूरी दुनिया होती है| जब पिता चले जाते है इस दुनिया से और जब वह यहाँ आती है और उसकी ख़ुशी में उसके पिता नहीं होने से उसे हमेशा वो कमी महसूस होती है और जब उसे उनकी याद आती है,तो उसकी आंखे पानी से भर आती है ,उनकी कमी का एहसास उसकी आँखों में तब स्पष्ट दिखता है | उसे तभी महसूस किया जा सकता है की बेटी क लिए उसके पिता पूरी दुनिया थे | ठीक वैसे ही जब पिता अपनी बेटी को शादी के बाद विदा करता है तब उस पिता की नाम आंखे और उससे अलग होने पर सिसकियूं की आहट को दबाने का प्रयास करता है तब लगता है कि पिता के लिए बेटी के प्रति कितना प्रेम था|
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