दो दिलों का रिश्ता कैसा होना चाहिए दो दिलों का रिश्ता डाली और फूल सा होता है, फूल टूट जाय तो डाली सुखी लगती है, फूल खिल जाय तो वही डाली खुबसुरत लगने लगती है, उसी प्रकार रिश्ते में भी दोनों दिलों का महत्व होता है एक ओर से निभाने वाले दिल के रिश्ते कभी ज्यादा नहीं चल पाते है क्योंकि वो दिल से नही दिमाग से निभाए जाते थे। इसलिए दो दिलों का रिश्ता ऐसा मजबूत होना चाहिए कि एक के बिना दुसरे का काम नही चल सकता है। दो दिलों का रिश्ता एक खूबसूरत एहसास है जब रिश्तों को किसी प्रकार से तोलने का प्रयास करोगे तो कभी आप बराबर तोल नही पाओगे क्योंकि ये रिश्ते एहसास से नापे जाते है, एहसास ही वो चीज़ है जिससे आपके रिश्ते की मजबूती पता चलती है।
कर्म क्या होते है ?
जब हम किसी व्यक्ति का बुरा या अच्छा करते है यह हमारे कर्म होते है? महत्वपूर्ण यह होता है कि हमें किस प्रकार क कर्म करने चाहिए| जिससे हमें जीवन में किसी प्रकार से कोई समस्या पैदा ना हो|
हमारे जीवन का उद्देश्य निरंतर प्रगति करना होता है,परन्तु हमारी प्रगति या हमारे कार्य या कर्म से किसी के मन को ठेस पहुँचती है तो वह हमारे अच्छे कर्म नहीं है| हमारे जो कार्य किसी ठेस पहुंचा रहा है तो इसका मतलब है हम कुछ गलत कार्य कर रहे है| गलत कार्य का नतीजा गलत ही होता है फिर हम प्रगति कैसे क्र सकते है| इसलिए हमें हमेशा अच्छे कार्य करते रहना चाहिए|
कर्म की परिभाषा क्या है ?
मेरे अनुसार कर्म की परिभाषा तो यही होगी कि किसी का मन दुखी करके किया हुआ कर्म अभिशाप रहता है| ठीक जब हम किसी की दुआओ के साथ कार्य को पूर्ण करेंगे तो हमे कार्य या व्यवसाय या जो भी कर्म हम कर रहे है उसमे सफलता तो मिलेगी ही सही साथ में दुआए भी मिलेगी जिसे हम विश्वास के साथ व्यवसाय भी कर सकेंगे |
कर्म ही पूजा कैसे है ?
कर्म ही पूजा है से तात्पर्य यह होता है कि जब व्यक्ति कर्म करना प्रारम्भ करता है और उसे सफलता मिलती है तो उसकी पूजा होने लगती हे यानि सम्मान सब बढ़ जाता है ,उसकी पूछ परख होने लगती है| यानि सबकुछ संभव है सिर्फ और सिर्फ कर्म की वजह से इसलिए कहा जाता है की कर्म ही पूजा है |
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