घर से प्रस्थान
ठंड का मौसम है,घर से निकले के पूर्व मैंने अपने ऊनी कपड़े स्वेटर मौजे व गरम कपड़े सब बैग में पैक कर लिये है। मेरी यात्रा की शुरुआत कुछ इस तरह हुए,मैंने सबसे पहले मेरी यात्रा के लिए बस मैं बैठकर नीमच जहां मूझे हरिद्वार की यात्रा करनी थी ,उसके लिए नीमच पहूंचने वाली बस में बैठकर नीमच पहूंचे।जहां बस ऑफिस में पूछने पर पता चला कि कुछ समय आपको रुकना पढ़ेगा ,उसके बाद आपके द्वारा बुक कि गई बस आ जायेगी।हम सब बस का इंतजार कर रहे थे तभी अचानक याद आया बस के सफर में भूख लगेगी तो साथ में हम सबके लिए फल लेकर आ जाते हैं,मैं जहां बाजार में बस स्टेण्ड के पास थैला लगा कर फल बेचने वाले से फल क्रय कर लेता हूं।फिर सब बैठे हुएहै वहां पहूच जाता हूं।पहूंचने के कुछ समय पश्चात ही हमारी हरिद्वार वाली बस आ जाती है।
बस का सफर
हम सब दोपहर के समय बस में बैठते है ।बस में कुछ यात्री और थे जो माता पिता का पिंड दान के लिए हरिद्वार जा रहे थे।सब लोग अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों से ही जूड़े हुए।बस में कुछ समय का सफर करने के पश्चात हमें बस में ही अपने परिचित मन्दसौर के लोग भी मिलें।फिर सबसे जान पहचान निकाली व सब अपनी अपनी सीट पर बैठ गये।कुछ समय पश्चात चितौड़ होते हुए भिलवाड़ा होती हुई बस चल ही रही थी ।आगे चलते हुए शाम का समय हो जाता है,बस एक जगह सभी यात्रियों के भोजन के लिए रुकती है।सभी यात्री अपना अपना खाना वहां ढांबे पर कर लेते हैं।कुछ ने खाना नहीं खाया चाय नाश्ता करके चल दिये।
बस का सफर फिर शुरु हो जाता है ,ठंड ज्यादा होने के कारण हम ओढ़ने की सामग्री को ओढ़ लेते हैंं।हम राजस्थान की सीमा समाप्त होते ही हरियाणा में प्रवेश करते है,हरियाणा बॉर्डर से निकलते निकलते हुए हम प्रात: सुबह दिल्ली पहूंच जाते हैं।
दिल्ली में सुबह फिर बस रुकती है ,सभी यात्री बस से उतर कर फ्रेश होकर चाय नाश्ता करते हैं।हम अलग लोगों के बीच थे जो हमारी मालवी भाषा को थोड़े कम समझते है।हम कुछ समय पश्चात वहां से फिर प्रस्थान करते हैं। अगले प्रदेश हमारे उत्तर प्रदेश की पावन धरा पर हम पहूंच जाते है ।जहां हमें खेतों बांस जैसे दिखने वाले गन्ने के खेत देखने को मिल रहे हैं।जिससे गुड़ व शक्कर बनायी जाती है।हमें प्रत्येक खेतों में गन्ने के खेत दिखाई दे रहे थे कुछ जगह चावल के खेत दिखे ।धीरे धीरे उत्तर प्रदेश के बाद हम देव भूमि उत्तराखंड में पहूंच जाते है।
उत्तराखण्ड की पावन धरती पर
हम जिस कार्य के लिए परिवार के साथ पहंचते है उसके लिए वहां पंडित हमें पहले से ही लेने के लिए इंतजार में खड़ा था।पंडित द्वारा पूछा जाता है हम पैदल स्थल तक पहूंचे या ऑटोरिक्शा से फिर सब बस में बहुत थके होने के कारण पैदल चलना ही उचित समझ कर पैदल निकल जाते हैं।हम गंगा मैया के किनारे किनारे थोड़े चलने क पश्चात हम वहां के बाजार जिसमें पिंड दान के पश्चात लगने वाली सभी सामग्री की दुकाने,मालाओं की दुकाने और सभी प्रकार की जरुरतें की दुकानों वाले बाजार से गुजरते हुए हम पंडित जी के घर पहंचते है।पंडित जी सभी को जलपान करवाते हैं।व पंडित जी अपना कार्य प्रारंभ करते हैं।सभी साथ वाले सदस्यों के नाम उनके पास रहने वाली पौथी में दर्ज करते है ताकि कितने ही वर्षों के बाद भी कोई पूछता है तो वो उन्हें बता देते है।नाम लिखने के पश्चात हम गंगा मैया के किनारे पहूंचते है ,जिसमें वहां का सब कार्य पूर्ण करने से पूर्व सभी मां गंगा मैया में डूबकी लगाते है ,कहते हैं मां गंगा मैया का जल इतना पवित्र है कि उसमें नहाने से सभी पाप धूल जाते हैं।पवित्र गंगा मैया में स्नान के पश्चात पूजा समाप्त करने के उपरान्त हम एक सब को भूख लगने लगती है।हम एक जगह से खट्टा मिठा अचार क्रय करते हैं और सभी के साथ खाना खाने के लिए एक होटल मैं बैठ जाते हैं।खाना खाने के पश्चात सभी मां गंगा मैया के मन्दिर के दर्शन करते हैं। वापस लौटने की तैयारी करते हैं।
वापसी का दौर
किस्मत हमारे साथ थी वापसि की टिकिट नहीं लेने के बाद भी हमें वापस वही बस मिल जाती है ,जिससे हम हरिद्वार में आये थे।मैंने सभी हमारे यात्रियों की टीकिट बूक करवायी और शाम को बस ने वहां से प्रस्थान किया ।वापसी के समय हम राजस्थान के पुष्कर में पुष्कर कुंड के दर्शन के लिए गये।वहां जाने के बाद पास में ही ब्राम्हा मन्दिर के दर्शन किये जो भारत में एकमात्र मन्दिर है।वहां दर्शन के पश्चात बाजार में राजस्थानी ड्रेस की खरीददारी करने के पश्चात घर के लिए प्रस्थान किया।अगले दिन शाम तक हम वापस नीमच पहूंच जाते है,इस प्रकार हमारी हरिद्वार की यात्रा सकूशल सम्पन्न हुई।
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