दो दिलों का रिश्ता कैसा होना चाहिए दो दिलों का रिश्ता डाली और फूल सा होता है, फूल टूट जाय तो डाली सुखी लगती है, फूल खिल जाय तो वही डाली खुबसुरत लगने लगती है, उसी प्रकार रिश्ते में भी दोनों दिलों का महत्व होता है एक ओर से निभाने वाले दिल के रिश्ते कभी ज्यादा नहीं चल पाते है क्योंकि वो दिल से नही दिमाग से निभाए जाते थे। इसलिए दो दिलों का रिश्ता ऐसा मजबूत होना चाहिए कि एक के बिना दुसरे का काम नही चल सकता है। दो दिलों का रिश्ता एक खूबसूरत एहसास है जब रिश्तों को किसी प्रकार से तोलने का प्रयास करोगे तो कभी आप बराबर तोल नही पाओगे क्योंकि ये रिश्ते एहसास से नापे जाते है, एहसास ही वो चीज़ है जिससे आपके रिश्ते की मजबूती पता चलती है।
विद्यार्थी जीवन का परिचय
जब बच्चा तीन वर्ष का होता है ।अभिभावक बच्चे को स्कूली शिक्षा की ओर धीरे धीरे आगे बढ़ाने के प्रयास में जूट जाते हैं।विद्यार्थी सुबह जल्दी उठना और सुबह सूबह तैयार होना और जल्दी उठने के दौरान कभी कभी लेट हो जाना है ,फिर जल्दी जल्दी में माता पिता खाना टिफिन पैक करके जल्दी ही स्कूल भेजना ,कभी कभी लेट हो जाना यह बचपन के स्कूली क्रम में चलता रहता है।कभी रोना कभी किसी चिज के लिए झगड़ना यह सब एक छोटे बच्चे के आम गुण होता है ।
कुछ समय पश्चात-
बच्चा धीरे धीरे बढ़ा होने लगता है वह 4th और 5th स्टेन्डर्ड में आ जाता है।फिर वह धीरे धीरे कुछ ना कुछ करने या सिखने लग जाते है,शरारते चालू हो जाती कुछ मस्ती करते हैं तो कभी कोई टीचर्स से शिकायते करते हैं तो कभी छोटी छोटी बातों के लिए लड़ने झगड़ने का सिलसिला चालू रहता है। एेसी ही धीरे धीरे बड़ी कक्षाओं का रुख अपनाने लगता है ।उसकी आवश्यकताएं बढ़ जाती है समय के साथ बदलाव होने लगता है।
विद्यार्थी जीवन के किशोरावस्था
विद्यार्थी धीरे धीरे उम्र के साथ कई तरह के बदलाव होने लगते हैं।और वह जीवन के उस पथ पर खड़ा रहता है जहां जीवन की असली परिक्षा की शुरुआत होती है।उसे भविष्य की चिंता रहती है या फिर भविष्य की चिंता की बात से परिवार में उसे बात करना शुरु कर देते हैं।
इस उम्र में वह किशोर और किशोरियों के प्रति आकर्षण के भाव बढने लगते है। विपरित लिंग के प्रतिआकर्षण बढ़ जाता है।
विद्यार्थी जीवन की युवावस्था
यह विद्यार्थी जीवन की विद्यार्थी को प्रभावित करने वाली अवस्था है। जिसमें वह अच्छे कार्य भी कर सकता है और बूरे लोगों के सम्पर्क में आकर गलत कार्यों की और भी जूकाव हो सकता है। यह उम्र विद्यार्थी जीवन की सबसे ज्यादा उथल-पुथल की रहती है। इसमें परिवार को चाहिये कि इस अवस्था में विद्यार्थी का सही ध्यान रखकर सही मार्ग दर्शन जरुरी है।ताकि वह भविष्य की राह में सही दिशा में अग्रसर हो जाये।
अभिभावकों की विद्यार्थी जीवन में भूमिका
बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षक के साथ साथ अभिभावकों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है।बच्चों के पेन पेन्सिल से लगाकर स्कूल फिस से लेकर अन्य सभी जरुरी आवश्यक्ताओं की पूर्ति करना पालक की जिम्मेदारी होती है।अगर सही समय पर विद्यार्थियों की आवश्यक्ता की पूर्ति होती है ,तो वह सही समय सही राह में उसका भविष्य उज्जवल होगा।
Comments
Post a Comment