कर्म करिये दूसरे कि चिंता छोड़िये,नयी सोच के साथ उंची उड़ान भरिये
साधू का स्नान के लिए नदि में उतरना
जब साधू नदि पर पहूंचने के पश्चात नहाने के लिए नदि में उतरता है व नदि में 1 डूबकी लगाता है जैसी ही वह दूसरी डूबकी लगाने के लिए पानी में जाने ही वाले थे के अचानक उन्हें पानी में एक बिच्छू दिखाई देती है,वह उस बिच्छू को बचाने के लिए हाथ से पकड़ते हैं तो जैसे ही उन्होंने बिच्छू को पकड़ा बिच्छू ने उन्हें डंक मार दिया ,डंक मारने पर बिच्छू उनके साथ से जलन होने के कारण पानी में वापिस छूट जाता है,जैसे छूटता है वापस वह बहकर नदि में जाने लगता है ,तो फिर साधू उसे बचाने का प्रयास करते है फिर बिच्छू उन्हें डंक मारता है ऐसा तीन-चार बार होता है,ये सब वो गैया चराने वाला खड़ा खड़ा देख रहा था।
उससे रहा नी गया और उसने साधू से पूछ ही लिया है,साधू महाराज जी ये बिच्छू जब बार बार आपको काट रहा है फिर भी आप इसे बचाने का प्रयास क्यों कर रहे हो।
साधू ने बढ़ा ही सुन्दर जवाब दिया है कि उसका काम काटने का है वो काटता है और मेरा काम बचाने का है मैं बचाता ही रहूंगा,यानी बहुत ही सुन्दर सा जवाब सुनकर उस व्यक्ति के मन खुशी सी छा गयी ।वह वहां से बहुत कुछ सिख कर चला जाता है।
मन ही मन में सोचता है हम जिस कार्य के लिए शुरुआत करते हैं उसके प्रति लोग क्या सोचते है वो उनका काम है सोचने का ,हमें अपना कार्य करते रहना चाहिए,हमें नयी सोच के साथ उड़ान भरते रहना चाहिए,लोगों का काम है कहने का तूझसे नहीं होगा,तू नहीं कर पायेगा,ये तेरे बस की बात नहीं है ,ये सब काम उनका है कहने का,हमें अपना काम करते रहना है।
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