Love(प्रेम) का शाब्दिक अर्थ
प्रेम पशु व मनुष्य के बीच हो सकता है।प्रेम एक माला के मोतियों की तरह रहता है जो धीरे धीरे धागे में पिरोने पर एक माला का रुप ले लेता है,अगर हल्का सा भी झटका लगता है तो प्रेम भी माला की तरह टूट के बीखर जाता है।
मां बेटी का प्रेम(LOVE)
ठीक वैसा ही जब थोड़ी बड़ी होने पर बच्ची कुछ शरारत या मस्ती करती है तो मां को गुस्सा आने पर वो बच्ची के गाल पर एक चाटा मार देती है ,बच्ची को दर्द होता है जोर जोर से रोती है रोती हुई भी फिर मां से लिपट कर रोती है ,वो प्रेम है जो बच्ची को चाटा मारने के बाद भी उसकी मां से ही लिपट कर रोती है ,और वो मां का ममतामयी प्यार है जो रोती हुई बच्ची के आंसू पोछकर उसे सांत्वना देती है।ये एक प्रेम(love) के सही मायने में परिभाषित करने के अच्छे उदाहरण है।
प्रेम(love) के रिश्तों की डोर
जब हम किसी को चाहते हैं या उसकी मुस्कान अच्छी लगती है ,उसका बोलना अच्छा लगता है ,उसका चलना अच्छा लगता है ,उसकी किसी भी एक चिज से हम प्रभावित होकर उसे मन ही मन में अच्छा अनुभव करते है,या हमें वो धीरे धीरे अच्छा लगने लगता है,व प्रेम का ही अंग हो सकता है,प्रेम कोई दिखने या खाने वाली चिज नहीं है ,ये महसूस करने का अहसास है।
(LOVE)प्रेम का मार्ग
प्रेम(love) एक पवित्र रिश्ता है।
प्रेम को निभाने के लिए हमें झूकना, सहन करना पढ़ता है। प्रेम का रिश्ता दो दिलों क जोड़ता है,प्रेम एक खुबसूरत एहसास है,ये अटूट बंधन है ,प्रेम दो दिलों का मेल है ।जो जीवन पर्यन्त निभाया जाता है।
यह एक या दो घण्टे में निभाने वाला एहसास नहीं है ये जीवन पर्यन्त निभाने वाला दो दिलों का अटूट एहसास है।
दो अधूरे रिश्ता का एक मजबूत जोड़ है प्रेम,
सुने पड़े दो विरान दिलों का एहसास है प्रेम।।
हमारे लेख को पुरा अवश्य पड़े व कमेंट करके जरुर बताये आपको कैसा लगा हमारा लेख। हमारे ब्लॉग पर आप और क्या पढ़ना चाहेंगे कमेंट करके जरुर बताये।
Comments
Post a Comment