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दो दिलों का रिश्ता कैसा होना चाहिए| Do Dilon Ka rishta

 दो दिलों का रिश्ता कैसा होना चाहिए दो दिलों का रिश्ता डाली और फूल सा होता है, फूल टूट जाय तो डाली सुखी लगती है, फूल खिल जाय तो वही डाली खुबसुरत लगने लगती है, उसी प्रकार रिश्ते में भी दोनों दिलों का महत्व होता है एक ओर से निभाने वाले दिल के रिश्ते कभी ज्यादा नहीं चल पाते है क्योंकि वो दिल से नही दिमाग से निभाए जाते थे। इसलिए दो दिलों का रिश्ता ऐसा मजबूत होना चाहिए कि एक के बिना दुसरे का काम नही चल सकता है।  दो दिलों का रिश्ता एक खूबसूरत एहसास है जब रिश्तों को किसी प्रकार से तोलने का प्रयास करोगे तो कभी आप बराबर तोल नही पाओगे क्योंकि ये रिश्ते एहसास से नापे जाते है, एहसास ही वो चीज़ है जिससे आपके रिश्ते की मजबूती पता चलती है।

लक्ष्य कैसे प्राप्त करें ? Laksh Kaise prapt kre

 लक्ष्य(Aim) कैसे प्राप्त कर सकते हैं? Laksh Kya Hota H ?

सफलता की कुंजी प्राप्त करने के लिए हमें मुसिबतों का सामना करते हुए लक्ष्य(Aim) निर्धारित करना होता है। जब हम किसी चिज को पसंद करते हैं या जब भी हमेम हमारे मन को अच्छा लगने वाले कार्य या जिससे मन खुश होता है ऐसे कार्य करने के लिए कुछ तय करते हैं ,जिसे हासिल करने के लिए हम अधिक प्रयत्न करने लगते हैं जिसे पसंद या हासिल करने की इच्छा जाग्रत कर कुछ तय करते हैं वही लक्ष्य होता है।

लक्ष्य(Aim) को प्राप्त करने के लिए हमें समय सारणी बनाकर उसी के अनुसार सोना है,उसी के अनुसार खाना है ,उसे के अनुसार जगना है,उसी के अनुसार सोचना है,जो तय कार्य करते हैं उन्हें इन्ही सब या यूं कहे योजना बनाकर योजना बद्ध तरिके से किया गया कार्य लक्ष्य(Aim) को प्राप्त करवा सकता है।हम जैसा कार्य करते हैं उनसे कुछ बड़ा सोचकर ही उसी कार्य को करना चाहिए,जब हम किसी कार्य को करना प्रारंभ करते हैं तो ये कभी नहीं सोचना चाहिए के कही ये पुरा नहीं होगा तो क्या होगा? हम अगर कार्य में असफल भी होते हों तो पुन:उस विफल कार्य से सिख लेकर फिर से प्रारंभ कर देते ,पिछली गलतियों से सिख लेकर हम कुछ नया सिख कर कार्य करना प्रारंभ करते है तो हम लक्ष्य(Aim) को आसानी से हासिल कर सकते हैं।

असफलता मिलेगी मिलने दें उसकी चिंता नहीं करना चाहिए,सफलता के के समस्या जरुरी है क्योंकि जितनी आपकी समस्याएं होगी,आपका कार्य भी उतना ही बढ़ा होगा।और सफलता भी उतनी बढ़ी होगी।।

लक्ष्य(Aim) निर्धारण कैसे करें?

लक्ष्य(Aim) निर्धारण करने से पूर्व हमें कुछ बातों पर जरुर चिंतन करना चाहिए।जिस कार्य के लिए आप अपने लक्ष्य का निर्धारण करना चाह रहे हैं उस कार्य को करने में आपको खुशी मिलेगी या नहीं?या जिस कार्य को आप कर रहें है उसमें आपको खुशी हो रही है या नहीं ?जिस कार्य को हम करते हैं ,वह कार्य कैसा भी हो सकता है उसमें ये जरुरी नहीं के आप कैसा कार्य कर रहें हैं। ये जरुरी होता है के उस कार्य में आपका मन लग रहा है या नहीं ? मन में आर्थिक रुप से आय कम होने पर भी नहीं लगता है?  पर ये जरुरी नहीं है।हमें उस कार्य के प्रति रुचि कितनी है ये जरुरी होता है।जिस कार्य में हमारी रुचि रहती है,या जिस कार्य को करने में हमें खुशी मिलती है या ये काम में कर सकता हूं,ऐसे कार्य का चयन करके हमारे संघर्ष की शुरुआत उस कार्य से प्रारंभ कर देनी चाहिए ,जो आपकी सही लक्ष्य(Aim)  होगा व आपको उसी में सफलता मिलेगी।

लक्ष्य(Aim)  को प्राप्त कौन कर सकता है?

लक्ष्य(Aim)  प्राप्त करने के लिए हमने कुछ निर्धारित कर लिया है कि मुझे ये कार्य करना है अब बात यहां आती है कि हमने यह कार्य तो कर लिया पर उसकी प्राप्ति हमें कैसे होगी?या कौन व्यक्ति उसे प्राप्त कर सकते हों?

लक्ष्य(Aim) को प्राप्त वही व्यक्ति कर सकता है जिसने सिढ़िया चढ़ना प्रारंभ कर दी हो ,वह पिछे मुड़कर नहीं देखता है कि पिछे क्या हो रहा है बस उसे सामने उसकी मंजील दिखाई देती है।उसी की ओर आगे बढ़ते हुए प्रयत्न करता रहता है। बीच बीच में कई बार ऐसी समस्याएं आ जाती है जिससे उनके मन में विचलित होने जैसी स्तिथि उत्पन्न हो जाती है,जब वहां व्यक्ति विचलित ना होकर अपने कार्य को निरन्तर रखता है तो वह जीवन में कभी निराश ना होकर अपने  लक्ष्य(Aim) को प्राप्त कर लेता है।

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