दो दिलों का रिश्ता कैसा होना चाहिए दो दिलों का रिश्ता डाली और फूल सा होता है, फूल टूट जाय तो डाली सुखी लगती है, फूल खिल जाय तो वही डाली खुबसुरत लगने लगती है, उसी प्रकार रिश्ते में भी दोनों दिलों का महत्व होता है एक ओर से निभाने वाले दिल के रिश्ते कभी ज्यादा नहीं चल पाते है क्योंकि वो दिल से नही दिमाग से निभाए जाते थे। इसलिए दो दिलों का रिश्ता ऐसा मजबूत होना चाहिए कि एक के बिना दुसरे का काम नही चल सकता है। दो दिलों का रिश्ता एक खूबसूरत एहसास है जब रिश्तों को किसी प्रकार से तोलने का प्रयास करोगे तो कभी आप बराबर तोल नही पाओगे क्योंकि ये रिश्ते एहसास से नापे जाते है, एहसास ही वो चीज़ है जिससे आपके रिश्ते की मजबूती पता चलती है।
मुसिबत कैसे जीवन में आती है?
मैं एक प्राईवेट स्कूल में कार्य करता था लगभग 9 वर्ष कार्य करने के पश्चात मैंने अपना स्वयं का एक निजि विद्यालय प्रारंभ किया। व उसका सूचारु रुप से संचालन भी कर रहा था। जो मूलभूत आवश्यकता रहती है उसके लिए पैसे भी खर्च किये जो पैसे खर्च किये थे वो कर्ज लेकर कार्य कर रखा था। जब स्कूल के सत्रांत में एक मुसिबत आये जिसे कोरोना काल आया । उस काल में विद्यालय में जिस क्षेत्र में विद्यालय संचालित है वहां ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग उसी समय मार्च में फसले मंडियो में ले जाते है लेकिन अचानक स्कूल बन्द होने पर पैसा रुक गया,ना स्टाफ का अन्त माह का पैसा मिला ना गाड़ी वालों को दे पाये ना विद्यालय में जो पैसे आने थे वो भी नहीं आ सका। जिससे पैसे देने में प्रोबल्म आने लगी, पैसे की तंगी सी चलने लगी, परिवार से ले नहीं सकते थे क्योंकि वो ये सोचते थे कि पैसा कमा रहा है ये तो स्कूल चल रहा है उसका पैसा कहा गया तो ना उधर से कोई सहायता ना ईधर से।
फिर कोरोना के कारण लॉकडाऊन लग जाता है पैसे मांगने वाले का कॉल आना बन्द हो जाता है। पर चिंता वही है जिनसे कर्ज लिया है उसे चुकायेंगे कैसे?
कुछ समय पश्चात लॉकडाऊन खुलता है।
लॉकडाऊन खुलने के पश्चात स्कूल की वैसी ही स्थिति थी पैसा दे नहीं पाये क्योंकि लॉकडाऊन जरुर खुला था परन्तु स्कूल बन्द थे। अब मेरी आय के स्त्रोत बन्द थे और पैसे लेने वाले के कॉल आ रहे थे। इधर स्कूल को बचाना मुश्किल था क्योंकि शासकीय स्कूल में लोक लुभावने चिजें या फिर मोहल्ला क्लास प्रारंभ कर दी गई थी परन्तु अशासकीय शालाओं के लिए कुछ स्पष्ट गाईडलाईन नहीं दिख रही थी। फिर भी अभिभावकों से सम्पर्क रखकर स्कूल को बचाये रखना जरुरी था ।आय का स्त्रोत ढूंढना मेरे लिए मुसिबत लग रही थी।
मुसिबत के दौर को ठीक करने के लिए एक नया व्यवसाय
इतनी सारी परेशानियों के साथ अब नया व्यवसाय कैसे प्रारंभ करें? पहले का कर्ज चुकाया नहीं परन्तु फिर से कर्ज लेकर मसाले का व्यापार प्रारंभ किया पर मुसिबतें आती है तो एक साथ आती है। इतना सब कुछ होने के बाद फिर मसाला व्यापार शुरु हुआ ही था के लॉकडाऊन लग गया, अब दुकान का किराया, स्कूल बिल्डिंग का किराया, बिजली बिल सब चालू है, जो कर्ज लिया था उसका ब्याज भी चालू है, परन्तु इन सब से लड़ने के लिए मेरे पास एक आत्मशक्ति थी जो मुझे बार बार कहती थी सब्र रख अच्छे दिन भी आयेंगे।मैंने हार नहीं मानी क्योंकि विषम परिस्थिति में जो आदमी डटा रहता है उसे सफलता निश्चित मिलती है ।
अब स्थतियां सामान्य सी होने लगी थी धीरे धीरे सबका कर्ज चुकने लगा है मेरा स्कूल व मसाले का व्यापार धीरे धीरे बढ़ रहा है ।अब देखते हैं आगे क्या होता है, जानने के लिए अगला ब्लॉग अवश्य पढ़ियेगा।
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