दो दिलों का रिश्ता कैसा होना चाहिए दो दिलों का रिश्ता डाली और फूल सा होता है, फूल टूट जाय तो डाली सुखी लगती है, फूल खिल जाय तो वही डाली खुबसुरत लगने लगती है, उसी प्रकार रिश्ते में भी दोनों दिलों का महत्व होता है एक ओर से निभाने वाले दिल के रिश्ते कभी ज्यादा नहीं चल पाते है क्योंकि वो दिल से नही दिमाग से निभाए जाते थे। इसलिए दो दिलों का रिश्ता ऐसा मजबूत होना चाहिए कि एक के बिना दुसरे का काम नही चल सकता है। दो दिलों का रिश्ता एक खूबसूरत एहसास है जब रिश्तों को किसी प्रकार से तोलने का प्रयास करोगे तो कभी आप बराबर तोल नही पाओगे क्योंकि ये रिश्ते एहसास से नापे जाते है, एहसास ही वो चीज़ है जिससे आपके रिश्ते की मजबूती पता चलती है।
जीवन में सिखने का लक्ष्य कैसे बनाये?
जीवन में व्यक्ति स्वयं कभी परिपूर्ण नहीं होता है ।उसे ऐसा कभी मानना या सोचना भी नहीं चाहिए कि मैं परिपूर्ण हूँ। सतत् जीवन में सिखने की प्रवृति बनाये रखना चाहिए, स्वयं में ये अभियान नहीं रखना चाहिए कि मैं अन्य से क्यों सिखूं, जब हमें छोटे बच्चे से भी अगर कुछ सिखना मिलता है तो सिख ले लेना चाहिए क्योंकि जीवन में हमेंशा सिखने की प्रवृति बनाने से हमें बढ़े लक्ष्य की प्राप्ति होती है।जीवन अगर सिखने का लक्ष्य बनाते हैं तो हम बढ़ी सफलताओं को पार कर जीवन में प्रगति मार्ग पर बढ़ते है।
जीवन में सिखना एक कला है।
हम देखते हैं कि व्यापारी लोग या व्यापार से जूड़े लोग देश विदेश की यात्राएं अधिक करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य रहता है, भ्रमण के दौरान सिखने वाले नये नये अनुभवों का लाभ उन्हें मिलता रहे । नये नये अनुभव से नित नया सिखने को मिलता है। जिन लोगो में सिखने की आदत होती है वे जिज्ञासा प्रवृति के लोग होते हैं, जिनमें इस प्रकार की कला रहती है।जिससे वे नया सिखते रहते हैं, इसलिए कहा गया है कि जीवन में सिखना एक कला है ।
सिखना कहा से सिख सकते हैं ।
हमेें सिखना या जीवन के उपयोग की जो बाते है वे हमें जीवन में घटित होने वाली घटनाओं के अनुभव के आधार पर सिखने को मिलती है। इसलिए सिख ये कहना की कहा से मिलती है तो इसकी कोई सिमित या स्थायी जगह नहीं है जहां से हम सिख सकते हैं ये तो जीवन में घटित घटनाओं का अनुभव होता है। जिनसे हमे सिखना मिलता है।
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